इंडियन नेशनल थिएटर द्वारा ‘वर्षा ऋतु संगीत संध्या-2025’ आयोजित
हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका विदुषी कलापिनी कोमकली की भावपूर्ण आवाज़ ने जगाई मानसून की रूहानी भावना, श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
चंडीगढ़, प्रसिद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका विदुषी कलापिनी कोमकली ने ‘वर्षा ऋतु संगीत संध्या 2025’ में अपनी सशक्त और अत्यंत भावनात्मक प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। यह संगीतमय संध्या इंडियन नेशनल थिएटर द्वारा दुर्गा दास फाउंडेशन के सहयोग से सेक्टर 26 स्थित स्ट्रॉबेरी फील्ड्स हाई स्कूल के सभागार में आयोजित की गई, जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा के माध्यम से मानसून के आगमन का स्वागत किया गया।
इस आयोजन का उद्देश्य केवल वर्षा ऋतु का उत्सव मनाना ही नहीं था, बल्कि इंडियन नेशनल थिएटर के संरक्षक स्वर्गीय नवजीवन खोसला की जन्मतिथि पर उन्हें भावभीनी संगीतमय श्रद्धांजलि अर्पित करना भी था। इंडियन नेशनल थिएटर के प्रेजिडेंट अनिल नेहरू और मानद सेक्रेटरी विनिता गुप्ता ने इसे आत्मा को छू लेने वाली संगीतमय श्रद्धांजलि बताया।
आदरणीय स्वामी ब्रिहितानंद, जो कि रामकृष्ण मिशन चंड़ीगढ़ के सेक्रेटरी हैं ने मंच पर सभी कलाकारों को सम्मानित किया।
प्रख्यात शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली ने अपनी संगीतमयी प्रस्तुति की शुरुआत राग मियां मल्हार से की। इस राग में उन्होंने अपने पिता पं. कुमार गंधर्व द्वारा रचित विलंबित खयाल "कारे मेघा बरसत नाही रे" एक ताल में निबद्ध कर प्रस्तुत किया। स्वर और भाव की गहराई से ओतप्रोत इस बंदिश ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
इसके पश्चात उन्होंने उसी राग में एक द्रुत रचना "जाजो रे बदरवा रे" सुनाई, जो पुनः उनके पिता द्वारा ही रचित थी। फिर उन्होंने मियां मल्हार की एक पारंपरिक रचना "बोल रे पपीहरा" को अत्यंत निपुणता और भावपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया, जिसे श्रोताओं से भरपूर सराहना मिली।
अपनी अगली प्रस्तुति में उन्होंने राग जलधर देस का चयन करते हुए भावनाओं से परिपूर्ण रचना "मेघा को ऋतु आयो रे" गायन किया, जिसने समूचे वातावरण को मानो बरसाती रागों की रसधारा से भर दिया।
इसके उपरांत उन्होंने एक प्रभावशाली तराना प्रस्तुत कर गायन को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। फिर मिश्र तिलंग राग में एक ठुमरी और उसके बाद एक सुंदर लोक भजन "ऋतु आई" की भावप्रवण प्रस्तुति दी, जिसमें लोक की मिठास और शास्त्र की गहराई एक साथ दृष्टिगोचर हुई।
अंत में, उन्होंने राग भैरवी में निबद्ध कबीर भजन "गगन घटा गहराई" के माध्यम से अपने गायन की सांगीतिक यात्रा का अत्यंत प्रभावशाली समापन किया। इस भजन की सूफियाना आत्मा और भाव की गहराई ने श्रोताओं को शांत, स्थिर और भीतर तक स्पंदित कर दिया।
कलापिनी कोमकली, पं. कुमार गंधर्व और विदुषी वासुंधरा कोमकली की सुपुत्री एवं शिष्या, आज भारत की श्रेष्ठ हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिकाओं में गिनी जाती हैं। उनके संगीत में परंपरा की गहरी समझ के साथ-साथ रचनात्मक आत्ममंथन की झलक भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। बंदिशों पर उनकी पकड़, रागों की सूक्ष्म विस्तार-प्रक्रिया और सगुण-निर्गुण दोनों प्रकार के भजन प्रस्तुत करने की आध्यात्मिकता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा दिलाई है।
अपने मंचीय प्रदर्शन के अतिरिक्त, कलापिनी के स्टूडियो रिकॉर्डिंग्स में आरंभ, इनहेरिटेंस (एचएमवी), धरोहर (टाइम्स म्यूजिक), और स्वर-मंजरी (वर्जिन रिकॉर्ड्स) जैसे चर्चित एलबम शामिल हैं। उन्होंने पहेली और देवी अहिल्या जैसी फिल्मों के लिए संगीत भी दिया है। उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2023 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कलापिनी कोमकली के साथ हारमोनियम पर चेतन निगम जोशी तथा तबले पर सुप्रसिद्ध तबला नवाज़ शम्भूनाथ भट्टाचार्जी ने बखूबी संगत की।कार्यक्रम का सुंदर संचालन अतुल दुबे ने किया।
इस कार्यक्रम में प्रवेश निशुल्क था, जिससे सैकड़ों संगीत प्रेमियों को प्रकृति की लय के साथ ताल मिलाते हुए शास्त्रीय संगीत का दुर्लभ आनंद प्राप्त हुआ।