आज मेरे यार की शादी है को लिखने वाले Lyricist Verma Malik Biography,संघर्ष
अपने कैरियर की शुरुआत पंजाबी फिल्मों से की थी इस गीतकार ने जिसका पूरा नाम बरकत राय मलिक था। एक समय ऐसा आया कि वह हिंदी फिल्मों की जद्दोजहद में गुम हो गया। कहते हैं कि एक घटना ही आपके जीवन को बिल्कुल बदल देती है। यही हुआ गीतकार बरकत राय मलिक के साथ भी। वर्मा मलिक बड़े सुंदर भजन लिखते थे। जब भी उनका कोई कार्यक्रम होता था तो शुरुआत वह भजन से ही किया करते थे। पंजाबी और उर्दू भाषा पर उनकी पकड़ बड़ी जबरदस्त थी लेकिन उनको हिंदी के बारे में बहुत ही कम ज्ञान था। हिंदी उन्होंने वह जब मुंबई आए तब आकर वहां सीखी। वर्मा मलिक ने अपने कैरियर की शुरुआत पंजाबी फिल्मों से की थी।
वर्मा मलिक का असल में पूरा नाम बरकत राय मलिक था उनका जन्म 13 अप्रैल सन 1925 में फिरोजपुर जो कि पाकिस्तान में है वहां पर हुआ था। छोटी उम्र में ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी। उस समय आजादी की लड़ाई का दौर था। छोटी उम्र में ही वह अंग्रेजो के खिलाफ अच्छी जोश भरी कविताएं लिखा करते थे और अक्सर वह कांग्रेस के जलसों में अपनी कविताएं पढ़ा करते थे। उसके बाद में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता बन गए। जहां भी कोई आसपास कांग्रेस पार्टी का कार्यक्रम हुआ करता था तो बरकत राय मालिक को वहां जरूर बुलाया जाता था और वह अपनी देशभक्ति से ओत-प्रोत कविताओं से लोगों में जोश भरा करते थे। अंग्रेजो के खिलाफ कविताएं लिखने का नतीजा यह निकला कि उनको उस समय गिरफ्तार कर लिया गया।
लेकिन उम्र छोटी थी तो उनको रिहा कर दिया गया। फिर वह देश का विभाजन के समय उनके पैर में गोली लगी और जख्मी हालत मैं वर्मा मलिक अपनी जान बचाकर दिल्ली आ गए। दिल्ली तो पहुंच गए लेकिन अब समस्या यह खड़ी हो गई कि रोजी रोटी कैसे चलाई जाए और अपना पेट कैसे पाला जाए। दिल्ली में संगीतकार हंसराज बहल के भाई वर्मा मलिक के काफी नजदीकी मित्रों में गिने जाते हैं। हंसरज बहल के भाई ने वर्मा मलिक की काफी मदद की और उनको मुंबई जाने की सलाह दी। तो वर्मा मलिक ने दिल्ली से मुंबई की तरफ रुख कर लिया।
वर्मा मलिक को फिल्मों में पहला मौका इसी महान संगीतकार हंसराज बहल ने ही दिया था। फिल्म का नाम था चकोरी। यह फिल्म सन 1952 में रिलीज हुई थी। कुछ ही समय में वर्मा मलिक का बतौर पंजाबी गीतकार बन गए। अब उनके मित्रों ने उन्हें एक और सलाह दी कि आप अपना नाम बरकत राय मलिक से बदलकर वर्मा मलिक रख लीजिए। तो वर्मा मलिक ने उनकी सलाह को कबूल किया और उस दिन के बाद उन्होंने अपना नाम बतौर गीतकार वर्मा मलिक लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने हंसराज बहल से संगीत के बारे में बहुत कुछ सीखा। फिल्मों की बारीकियां सीखी और गीत किस तरह से फिल्मों में लिखे जाते हैं उनके बारे में भी बहुत कुछ सीखा। वर्मा मलिक ने पंजाबी फिल्म में संगीत भी दिया था। वर्मा मलिक ने 40 के करीब पंजाबी फिल्मों में गीत लिखे,तीन फिल्मों में संवाद लिखें और कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया। साठ के दशक में पंजाबी फिल्में बन्नी कम हो गई और बाजार भी ठंडा पड़ गया। नतीजा यह रहा कि वर्मा मलिक साहब बेरोजगार हो गए।
वैसे तो वर्मा मलिक साहब को सन 1953 में आई फिल्म चकोरी के गीत लिखने का मौका मिला था इसके निर्देशक भी हंसराज बहल थे। लेकिन फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर अच्छा रिजल्ट नहीं निकला। उस दौरान कुछ और फिल्मों में भी वर्मा मलिक ने गीत लिखे। फिल्म दिल और प्रीत में जिसका संगीत निर्देशन किया था ओ पी नैयर साहब ने उस फिल्म में वर्मा मलिक का लिखा हुआ गीत लोकप्रिय भी हुआ लेकिन वर्मा मलिक साहब को काम नहीं मिला। क्योंकि वह पंजाबी फिल्मों में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते थे तो उन्होंने हिंदी फिल्मों की ओर ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया और मलिक के सामने सबसे बड़ी समस्या हिंदी भाषा की आने लगी थी। उनको एहसास हो गया कि हिंदी के बगैर यहां दाल नहीं गलेगी तो उन्होंने हिंदी सीखनी शुरू कर दी। वैसे तो पंजाबी और उर्दू भाषा के ऊपर उनकी बहुत जबरदस्त पकड़ थी। पंजाबी गीत लिखते लिखते उन्होंने हिंदी की पढ़ाई भी शुरू कर दी थी। इसका नतीजा यह निकला कि एक फिल्म आई थी हम तुम और वह जिसमें किशोर कुमार साहब ने गीत गाया था प्रिय प्राणीरेश्वरी यदि आप हमें आदेश करें । जो कि शुद्ध हिंदी भाषा में ही गीत गाया गया था और वर्मा मलिक साहब ने उस गीत को लिखा था।
वर्मा मलिक एकमात्र ऐसे गीतकार थे जिन्होंने मानवीय संबंधों के ऊपर बेहतरीन गीत लिखे। राखी बंधन है ऐसा और चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा। शायद यह एकमात्र मामा के ऊपर बना गीत ही है। वर्मा मलिक साहब का बेरोजगारी का दौर लंबा होता चला गया। परेशानी बढ़ने लगी काफी हाथ पैर चलाएं लेकिन उसका भी कोई रिजल्ट अच्छा नहीं निकला। उनके संघर्ष का कड़ा जीवन मानो खींचता ही चला जा रहा था। वह इतनी ज्यादा हताश हो गए कि उन्होंने निर्णय कर लिया कि वह अब फिल्मों में गीत नहीं लिखेंगे और नया कोई कारोबार की तलाश में जाएंगे। बेरोजगारी के इस दौर में उनको समझ में नहीं आ रहा था कि अब काम क्या किया जाए। परेशानियां बढ़ती जा रही थी।
एक दिन वह मुंबई में फेमस स्टूडियो के सामने से गुजर रहे थे तो उनके अपने एक मित्र मोहन सहगल की याद आई उनसे मिलने के लिए वह मिलने चले गए वहां पर मोहन सहगल ने वर्मा मलिक को कल्याणजी आनंदजी के पास भेज दिया। उस समय जब वह कल्याण जी आनंद जी के घर गए हुए थे तो वहां पर मनोज कुमार अपनी आने वाली फिल्म की तैयारी कर रहे थे। मनोज कुमार वर्मा मलिक साहब को जानते थे और उनके लिखे हुए पंजाबी गीतों के फैन भी थे। वहां मनोज कुमार ने वर्मा मलिक से पूछा कि क्या नया लिखा है तो वर्मा मलिक ने कुछ गीत सुनाए जिसमें एक गीत यह भी था कि रात अकेली और एक तारा बोले। मनोज कुमार को गीत के बोल एक तारा बोले पसंद आ गया और उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म उपकार के लिए इस गीत को लेने का निर्णय किया। एक बार फिर वर्मा मलिक की किस्मत ने उनको धोखा दे दिया। फिल्म उपकार में इस गीत की सिचुएशन नहीं बनी और गीत फिल्म में नहीं लिया गया।
मनोज कुमार ने इस गीत को उनकी आने वाली फिल्म `यादगार` के लिए रखने का निर्णय लिया। यह गीत एक सामाजिक परिवेश में लिखा गया था।वर्मा मलिक ने इस गीत को ऐसे बदल दिया कि बातें लंबी मतलब को, खोलना दे कहीं सबके पॉल फिर उसके बाद, एक तारा बोले तुन तुन तुन। फिल्म यादगार सुपरहिट हो गई और वर्मा मलिक साहब का लिखा हुआ गीत भी सुपरहिट हो गया। फिर क्या था। इसके साथ ही वर्मा मलिक साहब की किस्मत बदल गई। उसके बाद वर्मा मलिक के हाथ में काम ही काम आ गया। उनका अच्छा दौर शुरू हो गया। रेखा की सबसे पहली फिल्म आई थी `सावन भादो` उसके गीत कान में झुमका चाल में ठुमका कमर पर चोटी लटके, हो गया दिल का पुर्जा पुर्जा लगे पचासी झटके हो तेरा रंग है नशीला अंग अंग है नशीला। इस गीत में ऐसी धूम मचाई की सभी की जुबान पर यह गीत चड गया और सुपरहिट इस गीत को आज भी लोग सुनते हैं।
एक दिलचस्प कहानी के बारे में आपको बताते हैं। जब मनोज कुमार साहब रोटी कपड़ा और मकान फिल्म बनाने के लिए गीतों की सिलेक्शन कर रहे थे तो उन्होंने वर्मा मलिक साहब से महंगाई के ऊपर एक गीत लिखने के लिए कहा तो वर्मा मलिक साहब ने एक ऐसा गीत लिख दिया। बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई। पहले तो इस गीत के बारे में सभी हंस रहे थे। किसी को पसंद भी नहीं आ रहा था। लेकिन जब गीत की फाइनल रिकॉर्डिंग हुई तो वहां स्टूडियो में बैठे लोग भी इस गीत को गुनगुनाने लगे। तो अंदाजा हो गया था कि यह गीत सुपर डुपर हिट होने वाला है और हुआ भी ऐसे ही कुछ। फिल्म में जब यह गीत आए तो उस समय पब्लिक का रिस्पांस इस गीत को लेकर बहुत ही जबरदस्त था। कहा जाता है कि उस समय मौजूदा इंदिरा सरकार ने इस गीत के ऊपर कुछ समय के लिए प्रतिबंध भी लगा दिया था।
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वर्मा मालिक के कुछ पंजाबी सुपरहिट गीत
वर्मा मलिक साहब ने अपने कैरियर में 40 से ज्यादा पंजाबी फिल्मों में गीत लिखे हैं। गीत ऐसे लिखे कि वह अधिकतर सुपरहिट गीत रहे। उनके साथ हंसराज बहल जो कि उनके बहुत ही करीबी मित्र थे। अधिकतर संगीत हंसराज बहल साहब ने ही दिया था। याद आता है फिल्म गणेशा का गीत जिसको की गाया था शमशाद बेगम फिल्म कौडेशाह जो सन 1953 में आई थी जिसका संगीत दिया था सरदूल क्वात्रा ने। शमशाद बेगम का सुपरहिट गीत `मेरे सजना दी डाची बदामी रंग दी` उस समय काफी मकबूल हुआ था। सन 1954 में आई फिल्म वणजारा जिसके गीत भी वर्मा मलिक ने ही लिखे थे लता मंगेशकर और शमिंदर द्वारा गाया गीत जो की अपने जमाने का सुपरहिट गीत था।
एक समय तो ऐसा आया कि जब वर्मा मलिक साहब के सभी पंजाबी फिल्मों में गीत सुपरहिट होते चले गए। सन 1959 में आई फिल्म `भंगड़ा` में अंबिया दे बूटियां ते लग गया बूर। चिट्टे दंद हसनों नहीं रहन्दे, रब ना करे जे चला जाए, बीन ना बजाई मुंडेया मेरी गुत्त सपनी बन जाएगी। उसी वर्ष आई फिल्म `दो लछियां ` फिल्म सुपरहिट रही। साथ में गीतों ने भी अपना कमाल दिखा दिया। फिल्म का गीत `तेरी कनक दी राखी मूंडिया` रफी साहब और शमशाद बेगम की आवाज में आज भी लोग उसको सुनते हैं। इसके अलावा इसी फिल्म का गीत हाय नी मेरा बालम है बड़ा जालम। शमशाद बेगम की आवाज में था। रफी साहब का इसी फिल्म का गीत इक पिंड दो लछियां। शमशाद बेगम की आवाज में भाँवे बोल ते भांवें न बोल। यह भी गाना सुपरहिट। सन 1961 में आई फिल्म गुड्डी जिस के गीत प्यार दे भुलेखे। दाना पानी खींच के लियांदा। सन 1964 में आई फिल्म मामाजी जिसमें रफी साहब का गीत छुक छुक गड्डी चलदी जांदी। सन 1967 में आई पंजाबी फिल्म पिंड दी कुड़ी जिसके गीत भी सुपरहिट रहे। लता जी की आवाज में मैनू तेरे पीछे सजना।
इसके बाद पहचान, अनहोनी, धर्मा, विक्टोरिया नंबर 203, नागिन, चोरी मेरा काम, रोटी कपड़ा और मकान, एक से बढ़कर एक, फिल्ममें हिट होती चली गई। वर्मा मलिक को सन 1970 में फिल्म फेयर में सर्वश्रेष्ठ गीतकार का अवार्ड मिला। उनका लिखा हुआ गीत सबसे बड़ा नादान वही है फिल्म पहचान का। इसके बाद सन् 1972 में भी उनको सर्वश्रेष्ठ गीतकार का अवार्ड मिला फिल्म थी बेईमान गीत के बोल हैं जय बोलो बेईमान की जय बोलो। आठवें दशक में फिल्मी संगीत में बहुत से बदलाव आने शुरू हो गए थे। उसी दौरान वर्मा मलिक साहब की जीवनसंगिनी की मृत्यु हो गई थी जिसका असर वर्मा मलिक साहब के जीवन पर भी पड़ा। उनको भी अपने जीवन में मानो दिलचस्पी खत्म सी हो गई लगने लगी थी। उन्होंने अब फिल्मों में गीत लिखने भी बंद कर दिए थे। वह पूरी दुनिया से कट गए थे और अपने आप को एक कमरे में ही सीमेंट कर अपना जीवन व्यतीत करने लग गए थे। यहां तक कि उनके पुत्र राजेश मलिक जोकि म्यूजिक असिस्टेंट है उनके कहने पर भी वर्मा मलिक साहब ने फिल्मों में गीत नहीं लिखें। वर्मा मलिक 9 मार्च सन 2009 में बड़ी खामोशी से इस दुनिया को अलविदा कह दिया किसी को कानों कान तक इसकी खबर नहीं हुई। इसका जिक्र अगले दिन किसी भी अखबार में भी नहीं हुआ।
वर्मा मलिक की कुछ हिट फिल्में
छाई (1950)
कौडे शाह (1953)
वंजारा (1954)
दोस्त (1954)[3]
मिर्जा साहिबान (1957)
तकदीर (1958)
भांगड़ा (1959)
दो लछियां (1959)
गुड्डी (1961)
मैं जट्टी पंजाब दी (1964)
मामा जी (1964)
पिंड दी कुरी (1967)
दिल और मोहब्बत (1968)
यादगर (1970)
पहचान (1970)
सावन भादों (1970)
पारस (1971)
बालिदान (1971)
हम तुम और वो
शोर (1972)
बे-ईमान (1972)
विक्टोरिया नंबर 203 (1972)
अनहोनी (1973)
रोटी कपड़ा और मकान (1974)[3]
एक से बढ़कर एक (1976)
नागिन (1976)
जानी दुश्मन (1979)
शक्का (1981)[3]
दो उस्ताद (1982)
हुकुमत (1987)
वारिस (1988 फ़िल्म)
कौडे शाह (1953)
वंजारा (1954)
दोस्त (1954)[3]
मिर्जा साहिबान (1957)
तकदीर (1958)
भांगड़ा (1959)
दो लछियां (1959)
गुड्डी (1961)
मैं जट्टी पंजाब दी (1964)
मामा जी (1964)
पिंड दी कुरी (1967)
दिल और मोहब्बत (1968)
यादगर (1970)
पहचान (1970)
सावन भादों (1970)
पारस (1971)
बालिदान (1971)
हम तुम और वो
शोर (1972)
बे-ईमान (1972)
विक्टोरिया नंबर 203 (1972)
अनहोनी (1973)
रोटी कपड़ा और मकान (1974)[3]
एक से बढ़कर एक (1976)
नागिन (1976)
जानी दुश्मन (1979)
शक्का (1981)[3]
दो उस्ताद (1982)
हुकुमत (1987)
वारिस (1988 फ़िल्म)